झरिया(JHARIA)मां शारदे तू कहां बिना बजा रही है,मूर्तिकारों को मूर्ती बनाने में आड़े आ रही समस्याओं को लेकर मूर्तिकारों ने अपनी समस्या को साझा करते हुए छलकाया आखों से आंसू। बताते चलें के झरिया आंचल अंतर्गत फुलवारी बाग स्थित लगभग तिन पुश्तो से मूर्ति बनाने का काम मूर्तिकार एनसी पाल के दादा जी के समय से चलते आ रहे हैं। एक जमाने में उक्त स्थल पर लगभग पांच सौ मां सरस्वती की प्रतिमा हरेक वर्ष बनाया करते थे। लेकिन आज मात्र 150 मूर्ति झरिया के फुलारी बाग स्थित तैयार किया जाता है।
जिससे मूर्तिकारों के समक्ष भुखमरी जैसी स्थिती उत्पन्न हो गई है। मूर्तिकार एनसी पाल ने बताया कि यह कार्य हमारे दादा जी नंदो चंद्रो पाल जी के समय से काम करते हुए आ रहे हैं। लेकिन आज समय की मार क्षेलने को विवश हैं। इसका कारण यह है, कि झरिया क्षेत्र पूरा अग्नि प्रभावित के साथ-साथ कोयला से ढका पड़ा है, जिसके कारण कोलयरी को विस्तारित कारण होने से मिट्टी का मिलना अभाव हो गया। वही क्षेत्र में रह रहे लोगों का भी पलायन हो चुका है, जिसके कारण ना तो यहां कोई खरीदार है,मूर्ति का और ना ही इसकी लागत निकल पाती है।
मिट्टी का भी अभाव है, जिसके कारण मूर्ति बनाने के लिए कोलकाता कुमरटोली एवं झरिया के दामोदर नदी स्थित से मिट्टी मंगवाना पड़ता है। जिसमें लेबर खर्च प्रति बोरिया ₹300 पड़ जाता है। महंगाई के कारण लोग पूजा पाठ में भी रुचि कम रख रहे हैं। लोग जहां बड़ी संख्या में जगह-जगह पर मां सरस्वती का प्रतिमा स्थापित कर पूजा पाठ करते थे, आज नहीं के बराबर होते जा रही है। वहीं हमारे यहां चार सौ मूर्ति बनती थी, जिसे खरिदने के लिए सिंदरी,पाथरडीह,भोजुडीह, झरिया, कुसमा टांड़,गोलकडीह के अलावे दुरदराज से लोग आते थे।
लेकिन आज ऐसा नहीं है इसका कई कारण है एक तो अब हर जगहों पर मूर्ति बनाने वाले कारीगर मौजूद हैं, वहीं झरिया में मूर्ति बनाने में अनेकों समस्याएं होती है एक तो समय से पानी नहीं मिलना, दूसरा आंख में मिचौली खेलना बिजली की समस्या। जिससे आज मात्र डेढ़ सौ मूर्ति बनाने में समेट जा रहे हैं। इस मूर्ति को बनाने में दो महा से लगभग 6 कारीगर लगतार काम कर रहे हैं, जिनकी मेहनताना भी सही ढंग से नहीं निकल पा रही है, मूर्तिकार श्री पाल ने बताया कि हमारे पास पांच सौ से लेकर चार हजार तक की मूर्ती अलग अलग डिजाइनों में तैयार हो रही है.
जो 12 फरवारी के शाम तक पूरी तरह तैयार हो जायेगी। अगर इस पर स्थानीय प्रशासन की थोड़ी बहुत मदद होती तो हम कारीगरों को मूर्ति बनाने में हौसले के साथ-साथ उसकी मूल्य में भी बचत होती। लेकिन ऐसा आज नहीं होने के कारण हमारे बाल बच्चे इस कार्य को छोड़कर मजदूरी करने पर विवश है। अंत में लगता है कि यह कार्य को हमें भी छोड़ देना पड़ेगा। मौके पर कारीगर नारायण पाल, बलराम पाल,बबलू पाल, मंटू पाल आदि मुख्य कारीगर है।
NEWS ANP के लिए झरिया से अरविन्द सिंह बुंदेला की रिपोर्ट…
