बिहार(BIHAR) सियासत की अगर -मगर वाली डगर की राह में कई बार ऐसी सिलवटे उभर आती हैं कि कभी -कभी यहीं रास्ता बन जाता और सियासतन अपनी मंजिल पा लेते. सियासी करवटे और इसकी चाल और दांव -पेंच की पहचान और उजागर तो समय ही करता हैं. बस सही समय का इंतजार ही इससे पर्दा उठाता हैं, इसके ओट में कई खेल होते रहते हैं. दरअसल, यहीं सियासत की रंगत और चेहरा हैं.
अभी झारखण्ड विधानसभा चुनाव दहलीज़ पर हैं और कई सियासी समीकरण बनने वाले हैं और कई अंदर ही अंदर इसकी रुपरेखा तैयार कर रहें हैं.
भाजपा से बागी होकर और पिछले विधानसभा चुनाव में रघुवर दास सरीखे नेता को शिकस्त देकर याकायक सुर्खियों में आने वाले सरयू राय लगता हैं कि अपनी सियासत को और मजबूत और इसकी जमीन में जोर से पाँव जमाना चाहते हैं.
बेहद ही मंजे और वरिष्ठ नेता सरयू राय झारखण्ड की राजनीति में अपनी एक अलग मुकाम, पहचान और शख्सियत रखते हैं. उनकी बात को हर दल और नेता बड़ी गौर से सुनता हैं. अभी ताज़ातरीण मसला ये हैं कि उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाक़ात की और मौज़ूदा राजनीति पर चर्चा की और तफ़सील से गौर फरमाया. चर्चा हैं कि नीतीश ने उनकी पार्टी भारतीय जानतांत्रिक मोर्चा के जद यू में मिलने की सिफारिश की गई. हालांकि, अभी तक इस पर बात नहीं बनीं हैं,
सरयू राय का कहना हैं कि नीतीश से उनकी पुरानी दोस्ती हैं और अक्सर इस पर बोलते रहें हैं और राजनीति में संभावनाए हमेशा बनीं रहती हैं. लिहाजा कोई नई बात नहीं है.
इस मुलकात पर झारखण्ड के सियासी गलियारों में चर्चा काफ़ी तेज़ हैं और तमाम आकलन और अटकले लगाई जा रही हैं. सब की नजर इस बात पर हैं कि आखिर चुनाव से पहले इस मिलन का क्या साइड इफेक्ट होगा, कौन सी नई तस्वीर उभरेगी और किसकी चांदी होगी और किसकी लुटिया डूबेगी.
चर्चा पहले से ये भी हैं कि भारतीय जानतांत्रिक मोर्चा आगामी विधानसभा चुनाव में तक़रीबन 30 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों को उतारेगी.
सवाल ये हैं कि अगर सरयू राय की पार्टी का जदयू में विलय हो जायगा तो आखिर कौन स सियासी समीकरण उभरेगा और किसका फायदा होगा?.
अगर ये मिलन और समीकरण बैठता हैं तो फिर जद यू में एक नई जान झारखण्ड में आ जाएगी. बंजर हो चुकी उनकी जमीन में एक नई ताकत सरयू राय के आने से होगी, कभी झारखण्ड गठन के दौरान जदयू के 7 से ज्यादा विधायक हुआ करते थे. लेकिन, आज तो सूपड़ा ही साफ हो गया हैं और सून बट्टा सन्नाटा है. लाजमी हैं कि जेडीयू को इससे बेशुमार फायदा होगा.
इधर भाजपा में लंबे समय तक रहने के बाद सरयू राय पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के चलते बागी हो गए थे. पिछले चुनाव में रघुवर दास से सियासी अदावत का बदला जमशेदपुर पूर्वी सीट में हारकर लिया था. हालंकि बार -बार सरयू राय के भाजपा में लौटने की खबरें आते रहती हैं और वो भी कई बार बोल चुके हैं कि भाजपा नेताओं से उनके काफ़ी अच्छे और पुराने सम्बन्ध रहें हैं. लेकिन उनकी राह में रोड़ा अटकाने के आरोप अभी भी रघुवर दास पर ही लगते हैं. इस वजह से शायद बीजेपी में उनकी वापसी नहीं हो पाई. अगर जदयू से सरयू मिलते हैं तो भाजपा से भी एक तरह से करीब आएंगे
जेडीयू जैसी एक अच्छी पार्टी का बैनर भी उनके साथ होगा.सरयू राय की राजनीति में भी एक बदलाव आएगा. हालांकि, सबसे ज्यादा फायदा जेडीयू को होगा, क्योंकि सरयू राय एक नामचीन नाम झारखण्ड में और अच्छा दखल यहां की सियासत में रखते हैं.
फिलहाल, अभी तक तो ये सभी हवा -हवाई ही सियासी समीकरण हैं, जब तक कि ये हकीकत की शक्ल अख्तियार न करे. लेकिन, सच यहीं हैं कि सरयू राय और नीतीश कुमार के इस मुलाक़ात के कई मायने निकाले जा रहें. सब अपने -अपने तरीके से सोच कर अपनी -अपनी व्याख्या कर रहा और अपने -अपने विचार रख रहें हैं. खैर इस मिलन से आगे क्या असर होगा ?, ये तो समय ही बतायेगा .
NEWS ANP के लिए शिवपूजन सिंह की रिपोर्ट…
