JBKSS:टाइगर जयराम का बढ़ता दायरा और बिखरता कुनबा..!

रांची (RANCHI ):सियासत में हलचले और हिचकिचाहटे बनी रहती हैं. बगावत और बागीपन इसका मिजाज हैं. इसकी जमीन को उर्वरा रखने के लिए सींचना और मेहनत करना पड़ता हैं. तब जाकर सियासत में सितारा बुलंद होने के आसार रहते हैं.यहां किसी चीज़ की कोई गारंटी नहीं होती. संभावना और समय की ताकत ही आगे का भविष्य तय करती हैं..झारखण्ड की राजनीति में यकायक सामने आने वाले जयराम महतो की बात भी कुछ इसी तरह की हैं. उनके आगमन से झारखण्ड की सियासत में हलचले तो आई हैं. जयराम बिना लाग -लपेट की बात करते हैं और मौज़ूदा नेताओं पर खूब बरसते और बिगड़ते रहते हैं. उनकी सभाओं में उमड़ती भीड़ और भाषण का एक अलग प्रभाव और अंदाज दिखलाई पड़ता हैं. जयराम के तीखे और तीक्ष्ण बोल सच्चाई को समेटे रहते हैं, जो कड़वे होते और लोगों के दिलों दिमाग़ पर उतरते हैं.


भाषा आंदोलन के जरिए राजनीति के अखाड़े में उतरे जयराम एक क्रांति और हक़- हकूक की बात झारखंडवासियों के लिए करते हैं. 1932 का खतियान को आधार मानकर सियासत कर रहें हैं, जयराम ने लोकसभा चुनाव में भी एक अलग छाप तो छोड़ी खुद गिरिडीह लोकसभा से 3 लाख से ज्यादा वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहें. इसके साथ ही उनकी पार्टी जेबीकेएसएस से धनबाद, रांची और हज़ारीबाग से भी युवा उम्मीदवार उतरे और अच्छा खासा वोट लाकर दमदार मौजूदगी दिखाई. इसके जरिए एक संकेत तो दिखा गए कि झारखण्ड की राजनीति में एक नई पार्टी और युवा तुर्क आगामी विधानसभा में धमाका करने वाला हैं..झारखण्ड विधानसभा चुनाव दहलीज पर हैं और जयराम महतो की पार्टी झारखण्ड लोकतान्त्रिक क्रन्तिकारी मोर्चा भी मैदान में उतरने को बेताब है. इसे लेकर लगातार जयराम महतो की अगुवाई में जोश-खरोश के साथ तैयारी कर रही है. लेकिन, इससे पहले ही उनकी पार्टी में बगावत और बिखराव की बानगी भी दिखलाई पड़ने लगी हैं. उनके अपने ही साथी जयराम पर उंगली और उनकी भाषा पर सवाल उठा रहें हैं..


हजारीबाग से लोकसभा चुनाव लड़ने वाले संजय मेहता ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. हालांकि, इसकी सुगबुगाहट और सरगोशिया पहले से ही दिखलाई पड़ रही थी. सोशल मीडिया के जरिए संजय मेहता ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए संभावित प्रत्याशियों से जिस तरह 5100 रुपए की सहयोग राशि मांगी जा रही थी उसपर सवाल उठाया था. हालांकि, इसपर जयराम ने जवाब दिया था कि पार्टी की गतिविधियों को संचालित करने के लिएएक सहयोग बताया था, जो की जरुरी शर्त नहीं थी. इसके साथ ही संजय मेहता ने जयराम महतो के भाषणों में मारने -काटने जैसी भाषा पर भी आपत्ति जताई थी और कहा था कि सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं किया जा सकता और अराजकता से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता…संजय मेहता के इन सवालों पर एक तिलमिलाहट सामने आई औरकारण बताओ नोटिस जारी किया गया. लेकिन, संजय मेहता ने इसका जवाब देने की बजाय इस्तीफा ही देना बेहतर समझा, आपको बता दे ये वही संजय मेहता है, जिन्होंने हाजरीबाग लोकसभा चुनाव में डेढ़ लाख से ऊपर मत पाया था और जयराम महतो के काफ़ी करीबी माने जाते थे.

सवाल है कि चुनाव से पहले जयराम के नजदीकी माने जाने वाले संजय मेहता के पार्टी छोड़ने से कैसा सन्देश जायेगा?. क्या इससे बिखराव और टूट की चिंगारी नहीं सुलगेगी? क्या जयराम महतो के भाषण की भाषा वाकई सही नहीं है? जो सभ्य समाज के लायक नहीं है ?यहां सवाल ये भी है की सिर्फ संजय मेहता ही नहीं इससे पहले भी पार्टी के अंदर आतंरिक लोकतंत्र पर प्रश्न और बगवात की बात सामने आते रही है. आरोप -प्रत्यारोप लगते रहें है.जयराम महतो झारखण्ड की राजनीति में एक उदयीमान चेहरा है. उनसे लोगों की एक उम्मीदें हैं और जिस तरह उनकी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन किया, इससे विधानसभा चुनाव में और बेहतर करने की आस भी हैं..


ये सच हैं कि जयराम महतो की लोकप्रियता और दायरा बढ़ रहा हैं. लेकिन, उनके कुनबे में ही खटपट और बगावत बीच -बीच में सुनाई पड़ती है. जो जयराम और उनकी नई -नई पार्टी के लिए सही नहीं है.
दरअसल, विधानसभा चुनाव मुहाने पर है. जयराम महतो और उनकी पार्टी के लिए ये चुनाव इम्तिहान और एक सीढ़ी की तरह भी है. जिसके जरिए ही आगे का सफ़र तय किया जा सकता, लेकिन अगर आगाज में ही कलह और किचकिच दिखलाई पड़ेगी, तो लाजमी है कि इसका फर्क और असर चुनाव के साथ -साथ इसके भविष्य पर पड़ेगा.
बहरहाल, सभी की नजर विधानसभा चुनाव में झारखण्ड लोकतान्त्रिक क्रांतिकारी मोर्चा कैसा प्रदर्शन करती है. और जयराम कैसे अपनी पार्टी को सभी को साथ लेकर चलते हैं. इसपर ध्यान सभी का रहेगा.

NEWS ANP केलिए रांची से शिवपूजन सिंह की रिपोर्ट

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