सोचिए, आपके पास सेंचुरी बनाने का टैलेंट है लेकिन बल्ला खरीदने के पैसे नहीं।
यही हाल था नन्हे तिलक वर्मा का। उनके पिता हैदराबाद में बिजली का काम करते थे, रात तक पंखे ठीक करते और सुबह 3:30 बजे उठकर सिर्फ़ परिवार के लिए पैसे कमाने चले जाते। क्रिकेट तिलक का सपना था, लेकिन हालात इतने खराब थे कि सब कुछ नामुमकिन लगता था।
फिर आए कोच सलाम बयाश। 11 साल की उम्र में उन्होंने तिलक को टेनिस-बॉल क्रिकेट खेलते देखा। सलाम ने उनका टैलेंट देखा और सोचा,
“इस बच्चे के हुनर को मदद की जरूरत है, वरना प्रतिभा दब कर रह जाएगी।”
सलाम सर ने तिलक के माता-पिता को मनाया कि वे बेटे को ट्रेनिंग के लिए भेजें। उन्होंने सिर्फ़ कोचिंग नहीं करवाई, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि तिलक अपने सपने को पूरा कर सके।
हर दिन 40 किलोमीटर तक सलाम उन्हें अपनी बाइक पर अकादमी तक ले जाते, ताकि कोई प्रैक्टिस छूटे नहीं। जब परिवार सही खाना नहीं दे पाता, तो सलाम उन्हें खाना खिलाते। जब रहने की जगह नहीं होती, तो अपने घर में जगह दी, ताकि वे पूरी तरह क्रिकेट पर ध्यान दे सकें।
जब तिलक को U-14 स्क्वॉड से रिजेक्ट कर दिया गया, तब भी सलाम ने हार मानने नहीं दिया। उन्होंने और कठिन ट्रेनिंग दी, याद दिलाया कि तिलक इसका हक़दार है और सपने को जिंदा रखा।
आज, एशिया कप 2025 में पाकिस्तान के खिलाफ तिलक ने शानदार खेल दिखाकर भारत को जीत दिलाई। लेकिन इस जीत के पीछे सिर्फ एक खिलाड़ी का सपना नहीं था, बल्कि एक कोच का सफर भी था जिसने कभी भरोसा नहीं छोड़ा।
NEWSANP के लिए ब्यूरो रिपोर्ट

