(DHANBAD): शारदीय नवरात्रि के 9 दिनों में नवदुर्गा यानी मां दुर्गा अलग-अलग 9 रूपों की पूजा होती है. चौथे दिन की अधिष्ठात्री देवी कूष्मांडा हैं. इनकी आठ भुजाएं हैं, जिनमें इन्होंने कमण्डल, धनुष–बाण, कमल अमृत कलश चक्र और गदा धारण कर रखा है, इन अष्टभुजा माता के आठवें हाथ में सिद्धियों और निधियों की जप माला है और इनकी सवारी भी सिंह है.
मां कूष्मांडा सृष्टि का निर्माण करने वाली देवी हैं. जब किसी भी वस्तु का अस्तित्व नहीं था तब कूष्मांडा देवी ने अपनी हंसी से इस सृष्टि का निर्माण किया था. कुष्मांडा कुम्हड़े को भी कहते हैं. इसलिए देवी को कुम्हड़े की बलि अति प्रिय है.
मां कूष्माण्डा की पूजाविधि
- शारदीय नवरात्र के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा करते समय पीले रंग के वस्त्र पहनें।
- पूजा के समय देवी को पीला चंदन ही लगाएं।
- इसके बाद कुमकुम, मौली, अक्षत चढ़ाएं।
- पान के पत्ते पर थोड़ा सा केसर लेकर ऊँ बृं बृहस्पते नम: मंत्र का जाप करते हुए देवी को अर्पित करें।
- अब ॐ कूष्माण्डायै नम: मंत्र की एक माला जाप करें और दुर्गा सप्तशती या सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें।
- मां कूष्मांडा को पीला रंग अत्यंत प्रिय है। इस दिन पूजा में देवी को पीले वस्त्र, पीली चूड़ियां और पीली मिठाई अर्पित करें।
- देवी कुष्मांडा को पीला कमल प्रिय है। मान्यता है कि इसे देवी को अर्पित करने से साधक को अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है।

मां कूष्मांडा का प्रिय भोग
मां कूष्मांडा को पूजा के समय हलवा, मीठा दही या मालपुए का प्रसाद चढ़ाना चाहिए और इस भोग को खुद तो ग्रहण करें ही साथ ही ब्राह्मणों को भी दान देना चाहिए।
मां कूष्मांडा का प्रिय फूल और रंग
मां कूष्मांडा को लाल रंग प्रिय है, इसलिए पूजा में उनको लाल रंग के फूल जैसे गुड़हल, लाल गुलाब आदि अर्पित कर सकते हैं, इससे देवी प्रसन्न होती हैं।
देवी कूष्मांडा की कथा
देवी पुराण के अनुसार, सृष्टि के जन्म से पहले अंधकार का साम्राज्य था। उस समय आदिशक्ति जगदम्बा देवी, कूष्मांडा के रुप में सृष्टि की रचना के लिए जरूरी चीजों को संभालकर सूर्य मण्डल के बीच में विराजमान थी। जब सृष्टि रचना का समय आया तो इन्होंने ही ब्रह्मा विष्णु और शिव जी की रचना की। इसके बाद सत्, रज और तम गुणों से तीन देवियों को उत्पन्न किया जो सरस्वती, लक्ष्मी और काली के रूप में पूजी जाती हैं। सृष्टि चलाने में सहायता प्रदान करने के लिए ही देवी काली भी प्रकट हुईं। आदि शक्ति की कृपा से ही ब्रह्मा जी सृष्टि के रचयिता बने और विष्णु पालनकर्ता, वहीं शिव संहारकर्ता बनें।

इसलिए की जाती है चौथे दिन कूष्मांडा देवी की पूजा
पुराणों के अनुसार, तारकासुर के आतंक से जगत को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव के पुत्र का जन्म होना जरूरी था। इसलिए भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया। इसके बाद देवताओं ने देवी पार्वती से तारकासुर से मुक्ति के लिए प्रार्थना की, तो माता ने आदिशक्ति का रुप धारण किया और बताया कि जल्दी ही कुमार कार्तिकेय का जन्म होगा जो तारकासुर का वध करेगा। माता का आदिशक्ति रुप देखकर देवताओं की शंका और चिंताओं का निदान हो गया। इस रुप में मां भक्तों को यह संदेश देती हैं कि जो भी मां कूष्मांडा का ध्यान और पूजन करेगा उसकी सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। यही वजह है कि नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा का विधान है।
देवी का प्रार्थना मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
देवी कूष्माण्डा का बीज मंत्र-
ऐं ह्री देव्यै नम:
मां कूष्मांडा की आरती
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।शाकंबरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे ।भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे।सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी।क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
NEWSANP के लिए धनबाद से रागिनी पाण्डेय की रिपोर्ट