रांची (RANCHI ) सियासी करवटें या कहें उठा -पटक अब झारखण्ड की जनता को देखने -सुनने की आदत सी हो गई. क्या ये शगल इस प्रदेश के लिए कोई नया नहीं है? क्या इसकी मिट्टी में सियासी हलचले लिखी हुई हैं और यहां के सियासतदानों के लिए ये पैतेरे उनकी सियासत के लिए सजीवनी बूटी के माफिक है? कई ऐसे सवाल झारखण्ड की राजनीति के बारे में उपजते रहती है. अब तो इनकी चहल -कदमियां, नाज -नखरे और इनकी ख्वाहिशों से आम आवम भी समझ चुका है कि सिल्वर जुबली मनाने की दहलीज के करीब पहुंच चुका इस प्रदेश सियासत में कभी ठहराव नहीं आने वाला. इसका मिजाज उस समंदर की लहरों की तरह है जो बार -बार साहिल से टकरा कर वापस लौट जाती है यानि इसकी तासीर में ही उथल -पुथल चिपका है.
अभी देखिए खबरें फ़िजा में इस बात को लेकर काफ़ी तेजी से घुमड़ रही है कि जेएमएम के सीनियर लीडर और पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन छह विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो सकते है. इसे लेकर दिल्ली का दौरा भी किया है और कोलकाता में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता से भी मुलकात की है. बताया जा रहा है कि उनके घर से जेएमएम का हरा झंडा भी उतर गया है . जो इस बात का संकेत दे रहा है कि अब शायद जेएम एम का एक मजबूत विकेट गिरेगा. हालांकि, चंपाई इन बातों से इंकार कर रहें है, लेकिन, दूसरा पहलू ये भी है कि वे इससे कही न कही इकरार भी कर रहें हैं. खैर सियासत तो गर्म है और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के भी इन अटकलों से पसीने छूट गए हैं. और पार्टी में बिखराव की आहट का अहसास सबों को हो रहा. हालांकि, इस पर कोई भी अधिकारिक बयान कही से नहीं आया. लिहाजा अभी ये कयासों की खबरें ही हैं.
गौर फरमाए तो अभी महीना ही बीता है. हेमंत सोरेन कथित जमीन घोटाले के आरोप के बाद जेल से छूटे और चम्पाई सोरेन को हटाकर तीसरी बार मुख्यमंत्री बने. पांच महीने राज्य के सीएम रहकर कोल्हान टाइगर के नाम से जाने जानेवाले चंपाई सोरेन ने बड़ी ख़ामोशी से अपनी सत्ता चलाई, विपक्ष भाजपा भी उतना उनपर टिका -टिप्पणी नहीं की, बल्कि वाह -वाही ही गद्दी से उतरने के बाद चंपाई सोरेन का किया . सबकुछ तक़रीबन ठीक ही चल रहा था, लेकिन हेमंत जैसे ही जेल से बाहर आए पांच दिन के भीतर ही मुख्यमंत्री की गद्दी हथिया ली, बेचारे बड़े बेआबरू होकर चंपाई सोरेन को कुर्सी छोड़नी पड़ी. हेमंत सोरेन तो इस दरमियान गदगद और खुशी से लबरेज थे, लेकिन चंपाई अंदर ही अंदर मायूस और निराश थे.उनकी चाहत कम से कम विधानसभा चुनाव तक मुख्यमंत्री बने रहने की थी. लेकिन, उनकी सारी ख्वाहिशों को मौज़ूदा मुख्यमंत्री हेमंत ने जमीन पर पटक दिया. हालांकि, लगता है तब से ही जेएमएम के इस पुराने और कद्दावर नेता का मन बागी हो गया और बगावत की चिंगारी आहिस्ते -आहिस्ते ही सही पर सुलगने लगी थी .
तीन जुलाई को आनन -फानन में चंपाई सोरेन के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे को लेकर बैठक हुई थी. इस बात का मलाल चंपाई के चेहरे पर साफ -साफ दिखा और इस दौरान उनकी आंखे नम थी , चेहरा भावुक था और अंदर ही अंदर सीने में एक दर्द था. जिसके चलते ग़मगीन और खोमशी अख्तियार कर ली थी. उस दिन हेमंत सोरेन उनसे मिलने उनके घर गए थे, तक़रीबन बीस मिनट तक उनकी मुलाक़ात भी चली थी.
बताया जाता है कि इसके बाद से ही चंपाई सोरेन शिवराज सिंह चौहान के संपर्क में है. खबरें ये भी है कि उनके साथ लोबिन हेमब्रम और चमरा लिंडा भी साथ हैं.
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा इस सियासी बवडर पर हलकान और परेशान हैं. इसे लेकर भाजपा को जिम्मेवार और लगातार हमलावर हैं. आगे क्या होगा ये तो वक़्त तय करेगा. लेकिन, अगर चंपाई बीजेपी जाते हैं तो विधानसभा चुनाव से पहले एक तगड़ा झटका जेएमएम के लिए होगा, क्योंकि उनकी पार्टी का एक पुराना और तजुर्बेकार नेता चला जाएगा. इसे लेकर पार्टी के अंदर एक बैचेनी तो होगी ही साथ ही हेमंत सोरेन पर भी सवाल उठेंगे कि आखिर उनमे इतनी हड़बड़ी मुख्यमंत्री बनने कि क्यों थी ? सवालों के बौछार तो सहना पड़ेगा और पार्टी के आंतरिक वयवस्था पर भी उंगली उठेगी.
इधर, चंपाई के आने से भाजपा को एक नई ताकत मिलेगी, एक बड़ा आदिवासी और जमीनी नेता मिलेगा, जिनका कोल्हान इलाके में अच्छी पैठ और पकड़ हैं. इसके बूते कोल्हान की कमजोर कड़ी विधानसभा चुनाव में भाजपा दुरुस्त करने की कोशिश करेगी. क्योंकि बीजेपी को सत्ता में आना हैं तो संताल और कोल्हान में ज्यादा से ज्यादा सीट जितनी होगी, तब ही सत्ता की राह आसान होगी.क्योंकि अभी तक ये दोनों क्षेत्र बीजेपी के लिए दुखती रग ही साबित हुई है.
फिलहाल, अभी कोल्हान टाइगर भाजपा के खेमे में छलांग लगाते हैं या नहीं इस पर निगाहे तस्सली से सभी की बनी रहेगी हैं. क्योंकि उनकी पलटी विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा सियासी घटनाक्रम होगा.
NEWS ANP के लिए रांची से शिवपूजन सिंह की रिपोर्ट