झारखण्ड(JHARKHAND)वक़्त -वक़्त की बात है, जिस पार्टी में माहौल सजगार न हो और हाथ मिले लेकिन दिल न मिले , तो बगावत अख्तियार कर लोग किनारा कर लेते हैं. मन में विद्रोह और बदला लेने की कसक आगे बरकरार रहती हैं, क्योंकि यही मिजाज सियासत का रहा हैं. यही इसकी रंग और तासीर है. लेकिन, कुछ नेता ऐसे भी होते है, जो पार्टी में रहकर मुखर तो होते है. लेकिन, उस पार्टी को छोड़ने के लिए बार -बार कदम आगे बढाकर फिर पीछे खींच लेते हैं. हालांकि बागी स्वभाव बरकरार रहता है. क्योंकि इसके पीछे वजह एक मोह और दशकों का खून पसीना उस पार्टी को सींचने में लगा रहता है.
यहां हम बात बोरियो विधानसभा के जेएमएम विधायक लोबिन हेमब्रम की कर रहें है. जिनके बगवाती बोल और बागी स्वाभाव से तो प्रदेश वाकिफ है. लेकिन, इतना सबकुछ करने के बाद भी लोबिन न तो पार्टी छोड़ते है और न ही खिलाफत करने से बाज आते हैं.
अभी राजमहल लोकसभा चुनाव पर उनके रुख पर सभी की नजर थी. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया हैं. उनके रुख से जेएमएम दिक्क़त में आ गई है और परेशानी विजय हांसदा को हो गई है. जो तीर -धनुष लेकर फिर राजमहल के अखाड़े में जीत की हैट्रिक लगाने को बेताब हैं. लोबिन के कदम से बीजेपी की तो बल्ले -बल्ले होगी, क्योंकि वोट यहां जेएमएम का ही कटेगा और इस फायदे से कमल ही खिलेगा.
लोबिन का बागी मन पहले से ही था. अब तो वो जमीन पर आ गया हैं. उनका कहना हैं कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा में कुछ लोग पार्टी को बर्बाद कर रहें हैं. जेएमएम पेशा कानून और स्थानीय नीति जैसे मूल मुद्दे से भटक गई है. हालांकि, उन्होंने पार्टी छोड़ने से इंकार कर दिया.उनकी बगावत से तो असर जमीनी स्तर पर पड़ेगा, क्योंकि जेएमएम अभी मुश्किल दौर से गुजर रहा हैं.इस लड़ाई का फायदा बीजेपी को होगा, जो राजमहल जीतने की ख्वाहिश में दशक गुजार चुकी है. पिछले दो बार जेएमएम से बगावत करके हेमलाल मुर्मू ने कमल छाप पर सवार होकर विजय हांसदा को चुनौती दी. लेकिन, काफ़ी मशक्कत के बाद उनके गले नाकामी ही लगी. आखिरकार थक -हारकर फिर अपने घर जेएमएम ही आ गए. अबकी बार भाजपा से ताला मरांडी दो -दो हाथ विजय हांसदा से करेंगे.
इसबार बीजेपी यहां विजय हांसदा को नहीं हरा पाती है, तो फिर उसके लिए राजमहल का किला कब्ज़ा करना फिर सपना हो जायेगा. एकबार फिर इंतजार करना होगा और ये सब्र का लम्हा कितने साल या फिर दशक होगा. ये कोई नहीं जानता.
इसबार बीजेपी के सामने मौका भी है और समीकरण भी साथ है. पिछले तक़रीबन दस साल में उपजे एंटी इनकम्बेसी का फैक्टर उसके साथ है. इसके साथ बांग्लादेशी घुसपैठ जैसे नासूर बने मुद्दे को भूना सकती है.
लोबिन हेमब्रम का विजय हांसदा के साथ किस तरह की अदावत चली आ रही है. इससे भी बीजेपी वाकिफ है. यहां तो लोबिन हेमब्रम खुद विजय हांसदा को प्रत्याशी बनाने का विरोध कर चुके हैं. लेकिन, उनकी बात को अनसुना कर दिया गया और खुद निर्दलीय मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया.लोबिन अगर निर्दलीय इस सीट पर ताल ठोकतें हैं, तो फिर ताला मरांडी के जीत की चाबी लोबिन बन सकते हैं.
लोबिन हेमब्रम लगातार जेएमएम के उपरी लेवल की लीडरशिप और हेमंत सोरेन से नाराज रहते आए हैं. उनकी कोर टीम में शामिल लोगों के खिलाफ हल्ला बोलते रहें हैं . पार्टी की दुर्दशा के लिए, इन सभी को ही जिम्मेदार ठहराते आए हैं.हालांकि, जो हकीकत जमीन पर हैं. वह यही कहती हैं कि,विधायक लोबिन हेमब्रम की बातों से कौई इत्तेफ़ाक़ पार्टी नहीं रखती आई हैं .
अब उनका विकराल रूप देखने को मिल रहा हैं. देखना यही हैं कि जेएमएम उनके रुख को कैसे लेती हैं. क्योंकि लोबिन लंबे समय से जेएमएम के साथ रहें हैं और झारखण्ड अलग राज्य के आंदोलन के अगुवा भी रहें हैं.
खैर, उनका अंदाज और रंग राजमहल के दंगल में कैसा होगा. ये देखनेवाली बात होगी. यहां सवाल हैं कि क्या लोबिन वाकई ताला मरांडी के लिए जीत की चाबी होंगे और बीजेपी की जीत में अहम किरदार साबित होंगे या फिर राजमहल की जनता उन्हें जीत दिलाकर दिल्ली भेजेगी?
आगे क्या होगा अभी तो कुछ नहीं कहा जा सकता. पर ये तो तय है, कि राजमहल में लोबिन हेमब्रम तो एक फैक्टर जरूर होंगे. इससे नफा और नुकसान किसको होगा. ये 4 जून को आने वाला चुनाव परिणाम ही बताएगा.
NEWS ANP के लिए कुंवर अभिषेक सिंह की रिपोर्ट ….
