दिल्ली: भाजपा की हार का प्रमुख कारण और कोई नहीं, बल्कि केवल अमित शाह हैं। नरेंद्र मोदी जी के बाद अपना कद और हैसियत बड़ा रखने के चक्कर में अमित शाह उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, झारखंड व बिहार सहित दुसरे प्रांतों में अपने मर्जी से उम्मीदवार तय किये। भाजपा के चाणक्य कहलाने के चक्कर में सभी राज्यों के संगठन में जबरन हस्तक्षेप, जिला, मंडल व प्रदेश भाजपा द्वारा रायसुमारी से तय जिन नामों चुनाव लड़ाने के लिए भेजा गया उसे दरकिनार किया गया। भाजपा के वरीय नेताओं को इससे सबक लेना चाहिए।
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री ने जितने नाम सुझाए,उन नामों को अमित शाह ने दरकिनार कर दिया। भाजपा में संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष, संगठन मंत्री का बड़ा महत्व होता हैं, लेकिन अमित शाह ने इनके सुझावों को दरकिनार कर गलत लोगों को टिकट देने का काम किया।
2014 में भाजपा अपने संगठन और कार्यकर्ताओं के चरित्र, आचरण पर जीतने का काम किया।2019 में भाजपा नरेन्द्र मोदी जी के कार्यकलापों तथा विकसित भारत के सपनों के बल पर जीतने का काम किया, लेकिन 2024 में भाजपा संगठन से ज्यादा सरकार के स्तर पर, अहंकार और घमंड में चुनाव लड़ने का काम किया, जिसका परिणाम सामने हैं।
नरेन्द्र मोदी जी का नेतृत्व, विचार, आचरण, संस्कार और रहन सहन आज भी देश की जनता को कबूल हैं, लेकिन अमित शाह दबदबा, घमंड,अहम, पार्टी पर कब्जा और धन पशुओं का सहारा देश की जनता को कबूल नहीं हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान यह अफवाह कि चुनाव बाद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री से हटा दिया जायेगा, राजनाथ सिंह जी कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया जायेगा, भाजपा के हार का मुख्य कारण बना। इन अफवाहों का शीर्ष नेतृत्व ने कभी खंडन नहीं किया, जबकि चुनाव के दौरान फैले इस अफवाहों का खंडन जरूरी था।
राजस्थान में वसुंधरा राजे की अनदेखी, गुजरात में रूपाला का राजपूतों के विरुद्ध बयानबाजी और रवीन्द्र सिंह भाटी को भाजपा में शामिल कराकर फिर टिकट नहीं देना, राजपूत जाति अपने अपमान से जोड़कर देख रही थी। उत्तर प्रदेश में ब्रजभूषण सिंह के बेटे करण भूषण सिंह को टिकट देने में देरी, जौनपुर में चुनाव से ठीक पहले धनंजय सिंह की गिरफ्तारी तथा कुंडा राजा रघुराज प्रताप सिंह की अनदेखी भाजपा को उत्तर प्रदेश में करारी हार का कारण बनी।
बिहार में छेदी पासवान का सासाराम से, अश्विनी चौबे का बक्सर से टिकट नहीं देना भाजपा की हार का कारण बना। झारखंड में सरयू राय जी जैसे विद्वान, राजनीति के चाणक्य जैसे नेता की उपेक्षा, जयंत सिन्हा का टिकट काटना भाजपा की हार का कारण बना। भाजपा बक्सर, काराकाट, सासाराम,आरा, औरंगाबाद, जहानाबाद सभी जगह से चुनाव हार गई हैं।
उत्तर प्रदेश में आजमगढ़, बलिया,घोसी, गाजीपुर, प्रतापगढ़ भी भाजपा हार गयी। अगर भाजपा रायसुमारी की जगह अपनी मर्जी चुनाव में थोपती रहेगी तो परिणाम इसी तरह का होगा। झारखंड विधानसभा का चुनाव आनेवाला है,अगर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व संगठन की बातों की अनदेखी कर चुनाव लड़ने की कोशिश की तो झारखंड में और दुर्दशा होगी।
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा आर एस एस की उपेक्षा भी महंगी पड़ रही हैं। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आगे भी काम करें, लेकिन राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, वसुंधरा राजे, नरेंद्र सिंह तोमर, राजीव प्रताप रूड़ी, योगी आदित्यनाथ जी,संजय सिंह जैसे नेताओं की सलाह और राय की अनदेखी नहीं करें। मुझे जानकारी मिली है कि अमेठी में संजय सिंह जी जैसे कद्दावर नेता चुनाव प्रक्रिया से दूर रहें। बलिया में विरेंद्र सिंह मस्त का टिकट तो काट दिया गया, इसी तरह एम एल ए चुनाव में सुरेन्द्र सिंह का टिकट काट दिया गया था, जिसका परिणाम हुआ कि चंद्रशेखर जी वाली सीट बलिया भी भाजपा हार गयी।
भारत की जनता को आज भी नरेंद्र मोदी जी का नेतृत्व पसंद हैं, लेकिन उनकी आड़ में अगर दुसरे लोग हस्तक्षेप करेंगे या भाजपा संगठन पर कब्जा करने का कार्य करेंगे तो जनता स्वीकार नहीं करेगी। अमित शाह जी को भी पार्टी हित में, संगठन की भलाई के लिए भाजपा के कार्यकर्ताओं को महत्व देना चाहिए, इनकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। कार्यकर्ता पार्टी का रीढ़ होता हैं।
राम की नगरी अयोध्यावासी को कोसना बंद कीजिए..आंकड़े पर गौर कीजिए..अब जानिए उतरप्रदेश में क्या हुआ…
अयोध्या वालों को कोस-कोसकर पेट भर गया हो तो एक बार आंकड़े देख लीजिये। पिछली बार (2019 में) फैजाबाद में कुल 1087121 वोट पड़े थे जिसमें से 49 प्रतिशत भाजपा के पक्ष में गए थे। इस बार वहाँ 1140661 वोट पड़े हैं इसलिए ये मत कहिये कि गर्मी बहुत थी इसलिए वोटर घर से निकला ही नहीं। पिछली बार से ज्यादा लोग वोट डालने गए थे ! हाँ ये जरूर ही कि पिछली बार भाजपा को जो 529021 मत मिले थे, उसके मुकाबले इस बार सिर्फ 499772 वोट मिले मतलब करीब तीस हजार वोट कम हो गए। इतने से अंतर पर ये माना जा सकता है कि कोई नाराजगी थी जिसकी वजह से वोट छिटके हैं।
क्या नाराजगी रही होगी? मुलायम सिंह सरकार के समय प्रिंसिपल सेक्रेट्री थे नृपेन्द्र मिश्रा और कारसेवकों पर गोलियां चलाने का आदेश उन्होंने ही दिया था। इसी के सुपुत्र को पड़ोस के ही श्रावस्ती से भाजपा ने उम्मीदवार बना के उतारा था। खुद तो हारे ही, कुछ और वोट भी निश्चित रूप से ले गए होंगे। नृपेन्द्र मिश्रा को भाजपा ने राम जन्मभूमि ट्रस्ट वाले बोर्ड का हिस्सा बनाया हुआ है। जब चौदह की जगह चार सौ कार सेवकों को मारना पड़ता तो मारता कहने वाले मुलायम सिंह को 2021 में भाजपा ने पद्म विभूषण दिया था, तो नृपेन्द्र मिश्रा को पद्म भूषण दिया गया था।
आम चुनावों के बाद योगी जी को बदल दिया जाएगा, कोई और मुख्यमंत्री बनेगा यह बात पुरे यू पी में फैली। टिकट बटवारे में योगी को नजरंदाज किया गया।30/35 उम्मीदवार ऊपर से थोपे गए बिना योगी जी के सहमति से।राम जन्मभूमि निर्माण में नृपेन्द्र मिश्रा को मुख्य भूमिका देना मोदी-शाह की मर्जी के बिना तो हुआ नहीं। अब आप अपनी हार के लिए जनता को ही कोसने में जुटे हैं जबकि अपने कोर वोटर को नैतिकता का झुनझुना थमाकर “मोदी नाम केवलम” पर चुनाव जीतने के सपने देखते रहे। चुनावों में आरएसएस के कार्यकर्त्ता घर-घर नहीं घूम रहे थे,…आरएसएस और भाजपा के संबंध को लेकर पूछे गये मीडिया के एक सवाल के जवाब में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का वह बयान कहीं से जायज नहीं था…अटल जी के समय बीजेपी को आरएसएस की सहारे की जरूरत थी अब बीजेपी खुद सक्षम है..”
NEWS ANP के लिए दिल्ली से ब्यूरो रिपोर्ट…
