रंग, भंग और ठिठोली
देशभर की अनोखी होली
सावधानी भी जरूरी
होली! महज एक त्योहार नहीं, बल्कि वो रंगीन इश्क है, जो सदियों से भारतीय संस्कृति की नसों में बहता आ रहा है। ये वो दिन है, जब रिश्तों पर पड़े धूल को गुलाल से साफ किया जाता है, पुरानी रंजिशों को ठंडाई के घूंट में घोलकर पी लिया जाता है, और ज़िंदगी को बिंदास होकर जीने का बहाना मिल जाता है। अगर इतिहास के पन्ने पलटे जायें, तो होली की जड़ें हमें पौराणिक कथाओं में मिलती हैं। हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कहानी में ‘अहंकार’ को जलाकर ‘भक्ति’ का जश्न मनाया गया। वहीं, द्वापर युग में ब्रज की गलियों में कान्हा और राधा की होली प्रेम के उन रंगों में डूबी रही, जिनका असर आज भी बरकरार है। बरसाना की लठमार होली इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां नटखट गोपियाँ रंग से नहीं, बल्कि लाठियों से प्रेम की परीक्षा लेती हैं।
रंग, भंग और ठिठोली
होली का असली मजा तभी आता है, जब गालों पर गुलाल, हाथों में पिचकारी और सिर पर भांग का सुरूर हो! “बुरा ना मानो होली है!” ये सिर्फ एक जुमला नहीं, बल्कि इस दिन की पूरी फिलॉसफी है। भले ही बाकी दिन आप कितने भी सीधे-सादे रहें, लेकिन होली के दिन गली-मोहल्ले के ‘पक्के शरीफ’ भी छुपकर गुलाल से बदमाशी कर ही डालते हैं।
देशभर की अनोखी होली
बरसाना की लठमार होली – यहां महिलाएं लाठियों से पुरुषों की ठुकाई करती हैं, और बेचारे पुरुष हंसी-ठिठोली में इसे सहते हैं!
मथुरा-वृंदावन की फूलों वाली होली – यहां रंगों की जगह टनों फूल बरसाए जाते हैं, जैसे कन्हैया खुद इन पर चुपके से मुस्कुरा रहे हों।
शांतिनिकेतन की सांस्कृतिक होली – यहां रवींद्रनाथ टैगोर के लिखे गीतों और नृत्यों के साथ होली का जश्न मनाया जाता है।
मणिपुर की याओसांग होली – यहां होली सिर्फ रंगों तक सीमित नहीं, बल्कि थाबल चोंगबा (रात में होने वाले पारंपरिक नृत्य) के बिना अधूरी मानी जाती है।
सावधानी भी जरूरी
रंग खेलिये, मस्ती कीजिये, लेकिन ध्यान रखिये
सावधानी के रंग फीके न पड़ें! केमिकल वाले रंगों से बचें, पानी की बर्बादी न करें, और सबसे जरूरी बात, होली की मस्ती को जबरदस्ती न बनायें। तो इस बार होली में किस रंग में रंगने का इरादा है? गुलाल वाला प्यार या ठंडाई का खुमार?
NEWSANP के लिए ब्यूरो रिपोर्ट