काशी में चिता की राख से होली : नरमुंड और जिंदा सांप के साथ अद्भुत नजारा…

काशी में चिता की राख से होली : नरमुंड और जिंदा सांप के साथ अद्भुत नजारा…

वाराणसी(VARANASI): काशी में मसाने की होली एक अनोखी और अद्भुत परंपरा है, जो न केवल भारतीय संस्कृति की विविधता को दर्शाती है, बल्कि जीवन और मृत्यु के चक्र को भी एक साथ मनाने का एक अनूठा तरीका है। इस होली में शामिल होने वाले लोग चिता की राख को प्रसाद मानते हैं और इसे अपने चेहरे पर लगाते हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि जीवन और मृत्यु दोनों का सम्मान किया जाता है।

यहां के अघोरी बाबा, जो अपनी विशेष साधना और रहन-सहन के लिए जाने जाते हैं, इस अवसर पर अपने अनोखे करतब दिखाते हैं। उनकी उपस्थिति और क्रियाकलाप इस होली को और भी रहस्यमय और आकर्षक बनाते हैं। हरिश्चंद्र घाट पर राजा हरिश्चंद्र की पौराणिक कथा के माध्यम से इस होली की महत्ता को समझाया जाता है, जो सत्य और धर्म के प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं।

मसाने की होली में शामिल होने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं, और यह एक ऐसा अवसर है जब आम लोग अघोरियों के साथ मिलकर इस अनोखे उत्सव का हिस्सा बनते हैं। यहां की भीड़, उत्साह और अद्भुत दृश्य इस बात का प्रमाण हैं कि काशी की संस्कृति कितनी जीवंत और विविधतापूर्ण है।

इस होली के दौरान, शिव और पार्वती की पूजा की जाती है, और अघोरियों द्वारा चिता की भस्म का उपयोग कर एक-दूसरे पर राख डालने की परंपरा है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को एक साथ मनाने का प्रतीक है। यह एक ऐसा अवसर है जब लोग अपने डर और पूर्वाग्रहों को छोड़कर एक नई दृष्टि से जीवन को देखते हैं।

इस प्रकार, मसाने की होली केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह जीवन, मृत्यु, और पुनर्जन्म के चक्र को समझने और स्वीकार करने का एक अनूठा अनुभव है। यह काशी की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हर साल हजारों लोगों को आकर्षित करता है।

NEWSANP के लिए वाराणसी से ब्यूरो रिपोर्ट

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