होली आई रे, रंगों की बहार में छुपे रोचक किस्से…

होली आई रे, रंगों की बहार में छुपे रोचक किस्से…

जब मुगलों ने भी खेली थी होली (Holi 2025)
ब्रज की होली, जहां लाठियों से रंग बरसते हैं
जब ब्रिटिश अफसर को चढ़ा होली का रंग

होली… वो त्योहार जो सिर्फ रंगों का नहीं, बल्कि दिलों के मिलने, दुश्मनों के गले लगने और बेफिक्री में झूमने का त्योहार है। सदियों से भारत की गलियों में होली (Holi 2025) की हुड़दंग मची है, मगर क्या आप जानते हैं कि इतिहास में भी होली के ऐसे किस्से दर्ज हैं, जिन पर यकीन करना मुश्किल है? आइए, आपको लिये चलते हैं रंगों की दुनिया के उन पन्नों पर जहां होली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि जुनून बन गई थी।

जब मुगलों ने भी खेली थी होली (Holi 2025)
आज से करीब 400 साल पहले, मुगल बादशाह जहांगीर के दरबार में रंगों की ऐसी होली खेली जाती थी कि विदेशी यात्री भी दंग रह जाते थे। फरिश्ता नाम के एक इतिहासकार ने लिखा है कि शाही हरम में खासतौर पर होली का जश्न मनाया जाता था। खुद जहांगीर रानी नूरजहां के साथ रंगों में सराबोर हो जाते थे। यहां तक कि एक बार बादशाह अकबर ने अपने महल में अनारकली पर गुलाल फेंका था और कहते हैं कि तभी से उनका प्यार परवान चढ़ा था!

ब्रज की होली, जहां लाठियों से रंग बरसते हैं

अगर आप समझते हैं कि होली सिर्फ रंगों की है, तो शायद आपने बरसाना और नंदगांव की लट्ठमार होली नहीं देखी! यहां रंग के साथ लाठियां भी बरसती हैं और नटखट गोपियां अपने सखाओं को मजा चखाने से पीछे नहीं हटतीं। कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण जब राधा के गांव बरसाना जाते थे तो गोपियां उन्हें छेड़ती थीं और लाठियों से मारती थीं। बस, तभी से यह परंपरा चली आ रही है, और आज भी हर साल बरसाना में यह नजारा देखने को मिलता है।

जब ब्रिटिश अफसर को चढ़ा होली का रंग

ब्रिटिश राज में अंग्रेज अफसरों को होली फूटी आंख नहीं सुहाती थी, लेकिन बनारस के पंडों की होली का जोश ऐसा था कि एक बार एक अंग्रेज अधिकारी को भी रंगों में सराबोर होना पड़ा। कहा जाता है कि जब अंग्रेज अफसर बनारस के घाटों से गुजर रहा था, तो होली के उन्माद में डूबे कुछ लोगों ने उसे रंग डाल दिया। गुस्से में भरा वो अफसर शिकायत करने गया, लेकिन वहां के राजा ने हंसते हुये कहा, “साहब, ये बनारस की होली है, यहां हर कोई एक रंग का हो जाता है!”

होली सिर्फ एक मस्ती भरा त्योहार ही नहीं, बल्कि अच्छाई की जीत का संदेश भी देती है। भक्त प्रह्लाद की कहानी से लेकर होलिका दहन तक, इस पर्व के पीछे एक गहरी सोच छुपी है—बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो, सत्य और भक्ति की जीत निश्चित होती है। रंगों का हुड़दंग, पकवानों की मिठास और ठंडाई की खुमारी—बस यही कहती है कि होली आई रे! तो तैयार हो जाईये, गुलाल उड़ाने के लिये, भांग के रंग में झूमने के लिये और उन अनकहे लम्हों को जीने के लिये, जो सालभर याद रह जायें।

NEWSANP के लिए ब्यूरो रिपोर्ट

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