बढ़ती हवाई यात्रा के साथ सुरक्षा की चिंता, पढ़ें अरुणेंद्र नाथ वर्मा का लेख…

बढ़ती हवाई यात्रा के साथ सुरक्षा की चिंता, पढ़ें अरुणेंद्र नाथ वर्मा का लेख…

Safety In Air Travel : इस वर्ष के आरंभ में अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में एक भीषण हवाई दुर्घटना में अमेरिकन एयरलाइंस के एक जेट विमान की एक अमेरिकी सैन्य हेलीकॉप्टर से खुले आकाश में टक्कर हो गयी. विमान में सवार सभी 67 यात्रियों और चालकों की दर्दनाक मौत की खबर बेहद दुखद थी. लेकिन इसके साथ मिली यह सूचना और भी चौंकाने वाली थी कि इस दुर्घटना का कारण न तो खराब मौसम था, न ही विमान में तकनीकी खराबी थी.

यात्री विमान एयर ट्रैफिक कंट्रोल के निर्देशानुसार हवाई पटरी की तरफ पूर्वनिर्धारित मार्ग पर उतर रहा था और चंद मिनटों में लैंड करने वाला था. उधर हेलिकॉप्टर पायलट को यातायात नियंत्रण ने उसी ऊंचाई पर उड़ने का निर्देश देकर चेतावनी दे दी कि वह यात्री विमान से स्वतः दूरी बनाये रखे. इसके बावजूद सैन्य हेलिकॉप्टर से इतने बड़े यात्री विमान को साफ आसमान में देखने में चूक हो गयी. दुर्घटना के कारणों की जांच हो रही है, लेकिन जैसा कि राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा है, प्रथम दृष्टि में इस दुर्घटना के लिए एयर ट्रैफिक कंट्रोल की लापरवाही ही जिम्मेदार है.

इस दुर्घटना के तुरंत बाद फिलाडेल्फिया में एक हवाई एंबुलेंस की टक्कर में दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के लिए भी एयर ट्रैफिक कंट्रोल की आलोचना की गयी. अगले सप्ताह ह्यूस्टन हवाई अड्डे पर टेक ऑफ करते हुए एक अन्य विशाल यात्री विमान के इंजन में आग लगने पर उड़ान रोक लेने से एक और दुर्घटना होते-होते रह गयी. इस बार एयर ट्रैफिक कंट्रोल ने तुरंत आपदाकालीन सहायता भेजने में मुस्तैदी दिखाई, लेकिन इस तीसरी दुर्घटना ने रेखांकित कर दिया कि एयर ट्रैफिक कंट्रोल आकाश के अतिरिक्त हवाई अड्डों पर विमानों के जमीनी संचालन के लिए भी जिम्मेदार है और दुर्घटना के बाद यात्रियों की जान बचाने में हवाई अड्डे की अग्निशमन तथा एंबुलेंस सेवा प्रदान करने वाली एरोड्रोम रेस्क्यू एंड फायर फाइटिंग सर्विसेज के साथ तालमेल बिठाने और संयोजन का महत्वपूर्ण काम करता है.

इस संदर्भ में भारत में देखें, तो अपने यहां भारत में भी हवाई यातायात में आश्चर्यजनक वृद्धि हो रही है. हाल में ही इंडिगो एयरलाइंस द्वारा 1,000 विमानों और एयर इंडिया द्वारा 570 नये विमानों की खरीद के आदेश दिये गये हैं. उधर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों के अतिरिक्त द्वित्तीय श्रेणी के शहरों तक हवाई यातायात फैल रहा है. भारत में हवाई यात्रा अब उच्च वर्ग तक सीमित नहीं रह गयी है. अमेरिका जैसे विकसित देश के सत्ता केंद्र कैपिटल हिल के बहुत समीप हुई भयंकर आकाशीय भिड़ंत के परिप्रेक्ष्य में यह पूछना जरूरी हो गया है कि क्या भारत में बढ़ते हवाई यातायात के साथ हवाई सुरक्षा दृढ़ बनाये जाने की दिशा में भी समुचित कदम उठाये जा रहे हैं. कहीं हमारा सारा ध्यान विमानों और विमानपत्तनों की संख्या बढ़ाने तक ही तो सीमित नहीं है.

अमेरिकी एटीसी एसोसिएशन ने वाशिंगटन की भीषण दुर्घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए अमेरिका में कुशल और प्रशिक्षित नियंत्रकों की भारी कमी का प्रश्न उठाया है. उसने बताया है कि अमेरिका में 313 उड़ान केंद्रों में से 90 प्रतिशत संस्थान निर्धारित संख्या से काफी कम नियंत्रकों से काम चला रहे हैं. लेकिन भारत में एयर ट्रैफिक कंट्रोल से संबद्ध किसी संस्था या संगठन ने इस अहम मुद्दे की विवेचना नहीं की है.

सच यह है कि भारत में भी विमानों और हवाई अड्डों की लगातार बढ़ती संख्या के मद्देनजर हवाई यातायात नियंत्रण के लिए समुचित मानव संसाधन की चिंतनीय कमी है. एक संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हवाई यातायात नियंत्रकों की संख्या आवश्यक संख्या से 22 प्रतिशत कम है और एयर ट्रैफिक कंट्रोल संस्थानों की संख्या में 40 प्रतिशत की कमी है. इसका दुष्परिणाम यह है कि व्यस्त हवाई अड्डों पर यातयात नियंत्रकों को बिना आराम किये लगातार लंबी ड्यूटी करनी पड़ती है. तीन घंटे की ड्यूटी के बाद 45 मिनट के आराम का नियम नियंत्रकों की कमी के कारण एक ‘हवाई’ नियम बन कर रह गया है. उधर जैसे-जैसे कोहरे और धुंध में विमानों को रनवे पर उतारने में मददगार आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की उपलब्धि हमारे हवाई अड्डों पर बढ़ायी जा रही है, वैसे-वैसे ही काम के घंटों में नियंत्रकों की व्यस्तता लगातार बढ़ती जा रही है. मौसम की खराबी अब एटीसी के काम में ढील नहीं आने देती, उलटे उसकी जिम्मेदारी और बढ़ा देती है.

भारत में हवाई यातायात नियंत्रण के प्रशिक्षण की सुविधा बहुत सीमित है. एयर ट्रैफिक कंट्रोलरों का चुनाव एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित संयुक्त परीक्षा के जरिये होता है. सफल उम्मीदवारों को शारीरिक जांच, बोलने की क्षमता (वॉयस क्वालिटी) के परीक्षण आदि से गुजरने के बाद प्रशिक्षण के लिए भेजा जाता है. प्रयाग, हैदराबाद और गोंदिया के तीन संस्थानों में प्रशिक्षण पाने के बाद भी सफल प्रशिक्षु तुरंत व्यस्त हवाई अड्डों पर नियुक्त नहीं किये जा सकते. उन्हें एयर ट्रैफिक कंट्रोलर का लाइसेंस लेना होता है, जिसका नवीनीकरण हर तीन साल पर कराना पड़ता है. इनमें केवल प्रयाग का सिविल एविएशन ट्रेनिंग सेंटर हवाई यातायात नियंत्रण का पूरा प्रशिक्षण देता है.

हवाई यातायात नियंत्रण तीन चरणों में होता है- एरोड्रोम कंट्रोल, अप्रोच कंट्रोल और एरिया कंट्रोल. प्रयाग के सिविल एविएशन ट्रेनिंग सेंटर के अतिरिक्त अन्य दो संस्थाओं में इन तीनों चरणों का प्रशिक्षण नहीं मिलता. हवाई यातायात नियंत्रण के लिए पूरा देश चार मुख्य हवाई क्षेत्रों में विभक्त है. एक क्षेत्र के हवाई अड्डे से उड़ान भरकर दूसरे क्षेत्र में उतरने वाले विमान को तीनों तरह के नियंत्रण से गुजरना पड़ता है . इसलिए नियंत्रण करने वाले अधिकारियों को भी तीनों तरह के नियंत्रण में सक्षम होना चाहिए. समुचित योग्यता और कौशल पाने के लिए जो पर्याप्त व्यावहारिक अनुभव चाहिए, वह किसी एक संस्था में नहीं मिलता. इस लंबी प्रशिक्षण अवधि के कारण इन नियंत्रकों की संख्या अचानक बढ़ाना संभव नहीं होता. खरीद का आदेश देने के बाद विमानों की डिलीवरी तक के लंबे अंतराल में एयरलाइंस विमान लीज कर सकती हैं, लेकिन लंबी प्रशिक्षण अवधि के कारण यातायात नियंत्रकों की संख्या अचानक नहीं बढ़ायी जा सकती. इन तथ्यों के मद्देनजर एयरपोर्ट अथॉरिटी तथा डीजीसीए, दोनों को हवाई यातायात नियंत्रण केंद्रों की संख्या तथा हर केंद्र में प्रशिक्षणार्थियों की संख्या बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम यथाशीघ्र उठाना चाहिए. दुर्घटना से देर भली कहावत इस संदर्भ में अर्थहीन है. यहां तो देर ही दुर्घटना का कारण बन सकती है.


NEWSANP के लिए ब्यूरो रिपोर्ट

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