दुर्गा पूजा पर क्यों निभाई जाती है सिंदूर खेला की रस्म? जानें सदियों पुराने इस रिवाज का महत्व….

दुर्गा पूजा पर क्यों निभाई जाती है सिंदूर खेला की रस्म? जानें सदियों पुराने इस रिवाज का महत्व….

नवरात्र के पांच दिन षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी और विजयादशमी बेहद खास होते हैं. पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, त्रिपुरा, झारखंड और बांग्लादेश में इस पर्व की अलग ही धूम देखने को मिलती है. पश्चिम बंगाल में इस दौरान दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है. बंगाली समुदाय के लोग मां दुर्गा की पूजा के दौरान कई तरह की रस्में और परपंराएं निभाते हैं. इन्हीं रस्मों में से एक है- सिंदूर खेला. इस दौरान विवाहित महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं और एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर अपने अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं. आइए जानते हैं सिंदूर खेला के बारे में.

सिंदूर खेला का इतिहास
ऐसी मान्यताएं हैं है कि सिंदूर खेला की परंपरा 400 साल पुरानी है, जब पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में स्थानीय महिलाओं ने इस परंपरा की शुरुआत की थी. यह परंपरा जल्द ही भारत के अन्य हिस्सों में भी पहुंच गई और आज विजयादशमी उत्सव का एक जरूरी हिस्सा बन गई है.

कैसे मनाया जाता है सिंदूर खेला?
सिंदूर खेला के दौरान बंगाली महिलाएं सुंदर पारंपरिक साड़ियों और आभूषणों से सजी देवी के माथे और चरणों में सिंदूर लगाती हैं. उसके बाद वो एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं. इसके बाद भक्त अपनी हथेलियों में पान का पत्ता लेकर उसे देवी के चेहरे से लगाते हैं. इसके बाद देवी को विदाई दी जाती है. यह रिवाज मां के चेहरे से आंसू पोंछने को दर्शाता है.

ऐसी मान्यता है कि नवरात्र में मां अपने घर आती हैं और दशमी तिथि पर मायका छोड़कर ससुराल वापस जाती हैं. सबसे पहले उनके माथे पर सिंदूर लगाया जाता है और फिर उनको चूड़ियां (शाखा और पोला) पहनाई जाती हैं और मिठाई चढ़ाई जाती है. इसके बाद विवाहित महिलाएं एक-दूसरे के माथे और चेहरे पर यह सिंदूर लगाती हैं. वे एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर अपने सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं.

सिंदूर खेला 2025 कब है?
सिंदूर खेला की रस्म दशहरा के दिन निभाई जाती है. वैदिक पंचांग के अनुसार इस साल दशहरा 2 अक्टूबर 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा. इस तरह सिंदूर खेला का पर्व भी 2 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा..

NEWSANP के लिए ब्यूरो रिपोर्ट

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