जामताड़ा(JAMTADA):भूमिका: जब स्वास्थ्य का सवाल राजनीति की भेंट चढ़े
झारखंड जैसे सामाजिक-आर्थिक रूप से जटिल राज्य में, जहां आदिवासी, दलित और वंचित तबकों की बड़ी आबादी अब भी प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है, वहां “रिम्स-2” जैसी परियोजना एक आशा की किरण बन सकती है। लेकिन दुर्भाग्यवश, इस जनकल्याणकारी परियोजना पर भी राजनीति का ज़हर फैलता दिखाई दे रहा है।
स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी के राजनीतिक सलाहकार के सोसल मीडिया सेंडल से जारी प्रेस विज्ञप्ति में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि –
“जहां विकास शुरू होता है, वहां बाबूलाल मरांडी बाधा बनकर खड़े हो जाते हैं।”
रिम्स-2: झारखंड के स्वास्थ्य ढांचे की जरूरत क्यों?
- मौजूदा रिम्स (राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) में राज्यभर से हर दिन हज़ारों मरीज पहुंचते हैं।
- डॉक्टरों पर दबाव, वार्डों में भीड़ और संसाधनों की कमी, एक लंबे समय से चिंता का विषय रहा है।
- रिम्स-2 एक ऐसी परियोजना है, जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा की पहुंच को विकेन्द्रित करना, गुणवत्तापूर्ण उपचार देना और आधुनिक चिकित्सा तकनीक को आम आदमी के करीब लाना है।
डॉ. अंसारी के अनुसार,
“यह परियोजना आदिवासी, गरीब, ग्रामीण और दलित तबकों के लिए वरदान साबित होगी, क्योंकि यह सुविधाएं उन्हीं तक सबसे पहले पहुंचनी हैं जो अब तक सबसे दूर रहे हैं।”
राजनीति बनाम ज़मीनी हकीकत: आरोपों पर मंत्री का जवाब
बाबूलाल मरांडी का आरोप:
- रिम्स-2 परियोजना आदिवासियों की जमीन पर बनाई जा रही है।
- हेमंत सरकार जनविरोधी और आदिवासी विरोधी निर्णय ले रही है।
डॉ. इरफान अंसारी का जवाब:
- रिम्स-2 पूरी तरह से सरकारी ज़मीन पर प्रस्तावित है, किसी भी आदिवासी या किसान की निजी भूमि पर नहीं।
- भाजपा केवल झूठ फैलाकर समाज को भ्रमित करना चाहती है।
- जब रघुवर दास सरकार ने स्मार्ट सिटी व विधानसभा भवन के नाम पर आदिवासी ज़मीन छीनी, बाबूलाल मरांडी तब मौन क्यों थे?
वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोण से रिम्स-2 की आवश्यकता
- स्वास्थ्य सेवा का वितरण:
झारखंड में प्रति 10,000 लोगों पर औसतन एक MBBS डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं है। ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में यह आंकड़ा और भी चिंताजनक है। - गंभीर बीमारियों का समय पर इलाज:
कैंसर, टीबी, किडनी व हार्ट डिजीज जैसी बीमारियों के इलाज के लिए रांची का रिम्स ही एकमात्र विकल्प है – जो अब ओवरलोड है। - असमान चिकित्सा पहुंच:
अनुसूचित जनजातियों और गरीब समुदायों को उपचार के लिए भटकना पड़ता है। रिम्स-2 जैसे संस्थान इनकी सेहत में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं।
राजनीति या जनप्रतिनिधित्व? आदिवासियों की आड़ में कौन क्या चाहता है?
अंसारी ने कहा:
“बाबूलाल मरांडी को आदिवासी तभी याद आते हैं जब कुर्सी दूर नज़र आती है।”
यह टिप्पणी झारखंड की राजनीतिक हकीकत को उजागर करती है। आदिवासियों की ज़मीन, संवेदना और अधिकारों को कब और कैसे राजनीतिक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया जाता है — यह अब छिपा नहीं है।
भाजपा सरकार बनाम हेमंत सरकार: कौन वंचितों के साथ?
डॉ. अंसारी ने याद दिलाया:
- रघुवर दास सरकार में जामताड़ा में आदिवासी ज़मीन पर भाजपा कार्यालय का निर्माण हुआ।
- तब किसी ने आदिवासी हितों की बात नहीं की।
- आज जब जनता के लिए अस्पताल बन रहा है, तब भाजपा को संविधान और आदिवासियों की याद आ रही है।
रिम्स-2: सिर्फ इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं, सामाजिक न्याय का मॉडल
- यह परियोजना स्वास्थ्य के क्षेत्र में समानता लाने का जरिया बन सकती है।
- आदिवासी, दलित, गरीब – सबके लिए सुलभ, किफायती और आधुनिक इलाज उपलब्ध कराने की दिशा में यह ऐतिहासिक पहल है।
डॉ. अंसारी की दो टूक: “राजनीति कम करें, विकास को समझें”
स्वास्थ्य मंत्री ने साफ कहा:
“हम जनता से झूठ नहीं बोलते। अगर बाबूलाल जी को संदेह है तो तथ्यों के साथ आएं, वरना सस्ती लोकप्रियता के लिए भ्रम फैलाना बंद करें।”
उन्होंने यह भी जोड़ा:
“यह सरकार दलालों की नहीं, जनता की है। और जनता के स्वास्थ्य से कोई खिलवाड़ नहीं होने देंगे।”
निष्कर्ष: वंचितों के लिए स्वास्थ्य क्रांति को राजनीतिक शिकार न बनाएं
झारखंड की सच्चाई यह है कि यहां के सबसे गरीब तबके को न इलाज सुलभ है, न संसाधन। ऐसे में रिम्स-2 जैसी परियोजना न केवल एक चिकित्सीय आवश्यकताअ है, बल्कि सामाजिक न्याय का ज़रिया भी है।
राजनीतिक मतभेद हों, यह लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन जब बहस का विषय वंचितों की सेहत हो, तो सभी दलों को विकास की एकजुटता दिखानी चाहिए।
NEWSANP के लिए जामताडा से आर पीआई सिंह की रिपोर्ट

